History of Google (गूगल इतिहास

विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?

चित्र
विश्व पर्यावरण दिवस   विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हमें प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशीलता और उनके संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करने का समय है। इस दिवस को याद करते हुए, हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने और स्थायी समृद्धि के दिशानिर्देश निर्धारित करने का संकल्प लेना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस को हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण सम्मेलन में हुई थी, जिसमें पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक संविधान बनाया गया था। इतिहास पर्यावरण दिवस का इतिहास 1972 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण और विकास समिति (UNEP) द्वारा स्थापित किया गया था। यह दिन प्रत्येक वर्ष 5 जून को मनाया जाता है और पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्णता को जागरूक करने के लिए विश्वभर में उत्साह से मनाया जाता है। यह दिन पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने, कार्यों को संबोधित करने और जागरूकता बढ़ाने का एक अच्छा मौका प्रदान करता है। आयोजन पर्यावरण दिवस के आयोजन में विभिन्न संगठन, सरकारी विभाग और समुदायों द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें प्रद...

भारत में हरित क्रांति किसने शुरू की

           हरित क्रांति 

हरित क्रांति, भारत में 1960 के दशक में आयोजित कृषि आंदोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य था कृषि उत्पादन में वृद्धि करना। इसका मुख्य उद्देश्य था फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना और भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारना। इस आंदोलन के दौरान, उच्च उत्पादकता बीज, उर्वरक, और प्रौद्योगिकी के उपयोग की बढ़ती मान्यता मिली। इस आंदोलन के कारण, भारत का कृषि क्षेत्र महत्वपूर्ण रूप से प्रगति कर गया और देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान हुआ।

उल्लेखनीय हस्तियाँ और संस्थाएँ

हरित क्रांति में कई उल्लेखनीय हस्तियाँ और संस्थाएँ शामिल थीं। कुछ महत्वपूर्ण नाम इस प्रकार हैं:
  1. डॉ. वामन राव: हरित क्रांति के प्रमुख नेता और कृषि वैज्ञानिक।
  2. डॉ. नोर्मन बोरलॉग: इंटरनेशनल विकास अनुसंधान इंस्टीट्यूट (IRRI) के संस्थापक और एक विश्वविद्यालय प्रोफेसर।
  3. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद: भारत में कृषि अनुसंधान को निर्देशित करने वाला महत्वपूर्ण संस्था।
  4. ग्रीन रेवोल्यूशन कमेटी: हरित क्रांति की योजना और कार्रवाई को निर्देशित करने वाला संगठन।
इन संस्थाओं और व्यक्तियों ने हरित क्रांति को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आचरण

हरित क्रांति का आचरण कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ देखा जा सकता है। इस आंदोलन ने उच्च उत्पादकता बीज, उर्वरक, और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ, बल्कि कृषि क्षेत्र में भी अर्थव्यवस्था की मजबूती आई। यह आंदोलन भारतीय किसानों की जीवनधारा को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।

 हरित क्रांति का औचित्य

हरित क्रांति का औचित्य इसलिए है क्योंकि यह भारतीय कृषि को एक नई दिशा दिखाने वाला एक ऐतिहासिक आंदोलन था। इस आंदोलन ने उच्च उत्पादकता बीज, उर्वरक, और प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर कृषि क्षेत्र में नवाचार लाया। इससे भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हुई। इसके माध्यम से, भारत ने अपने खेती और उत्पादन क्षेत्र में विश्वस्तरीय मानकों को प्राप्त करने का अभियान चलाया।

आलोचना

हरित क्रांति को लेकर आलोचना उसके अवधारणाओं, क्रियाओं, और परिणामों पर आधारित हो सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि हरित क्रांति के उपायों में उर्वरकों और पेस्टिसाइड्स का उत्पादन और उपयोग बढ़ाने की वजह से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव हुआ। वे यह भी दावा करते हैं कि यह आंदोलन केंद्रीय सरकार के साथ गहरे संबंधों की तरह दिखाई देता है, जिससे कि यह किसी किसानों के लाभ के बजाय केंद्र सरकार के उद्योगों को प्राथमिकता देता है। इसके बावजूद, अन्य लोग मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को विश्वस्तरीय उत्पादन स्तर पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और खाद्य सुरक्षा में सुधार किया है। इसके साथ ही, इस आंदोलन ने कृषि सेक्टर में तकनीकी और वैज्ञानिक अद्यतन को भी प्रोत्साहित किया है।

वैकल्पिक खेती के तरीके

वैकल्पिक खेती के तरीके विभिन्न प्रकार की प्रणालियों और तकनीकों को सम्मिलित करते हैं जो परंपरागत खेती से अलग होते हैं। कुछ वैकल्पिक खेती के तरीके निम्नलिखित हैं:

  1.  जैविक खेती: जैविक खेती में केवल प्राकृतिक उर्वरकों और जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है, और कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता है।
  2.  संचित जल कृषि: संचित जल कृषि में, जल को विशेष संचारण प्रणालियों का उपयोग करके जल का संचयन और उपयोग किया जाता है।
  3. अनाज क्रोपिंग: अनाज क्रोपिंग में, अनेक प्रकार की अनाज संयंत्रों को एक साथ उगाया जाता है, जो मिश्रित खेती प्रणाली को प्रोत्साहित करता है।
  4. खेती में उपयोग की गई तकनीकों की संख्या और प्रकार का विकास भी हो रहा है, जो संभावनाएं प्रदान करता हैं जैसे कि आधुनिक खेती तकनीक, हाइड्रोपोनिक्स, और वर्टिकल खेती।
इन वैकल्पिक खेती के तरीकों का उपयोग किसानों और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है ताकि उत्पादकता बढ़ाई जा सके, और साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके।

हरित क्रांति , या तीसरी कृषि क्रांति , 

हरित क्रांति और तीसरी कृषि क्रांति दो अलग-अलग आंदोलन हैं।
  1. हरित क्रांति: हरित क्रांति 1960 के दशक में भारत में आयोजित कृषि आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य था कृषि उत्पादन में वृद्धि करना और भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारना।
  2. तीसरी कृषि क्रांति: तीसरी कृषि क्रांति या तीनों की कृषि क्रांति, भारत में 2019-2020 के दौरान हुई एक आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य था कृषि संबंधित कानूनों के खिलाफ विरोध करना और किसानों की मांगों को सुनिश्चित करना, जैसे कि MSP (Minimum Support Price) की गारंटी और उनके कर्ज माफी।
इन दो क्रांतियों में यह अंतर है कि हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में तकनीकी और वैज्ञानिक उपायों का प्रयोग किया था, जबकि तीसरी कृषि क्रांति ने निरंतर कृषि कानूनों में संशोधन की मांग की थी।

इतिहास 

तीसरी कृषि क्रांति की शुरुआत 2020 के अंत में हुई जब भारत सरकार ने कृषि संबंधित तीन कानून पारित किए: कृषि उत्पादों की विपणन, संगठन, और विपणन (विपणन कृषि संगठन कानून), कृषि उत्पादों के निजी खरीद केंद्रों (एएपीएमसी) के लिए विशेषाधिकार प्रदान करने के लिए अग्रिम विज्ञान, और कृषि उत्पादों की कीमतों के लिए आंकड़े (संडी ऑन फार्म ट्रेडिंग बिल)।

किसानों का मानना था कि ये कानून उनके कृषि आर्थिक व्यवसाय को खतरे में डाल सकते हैं, क्योंकि उन्हें अब अन्यत्र बाजार में अपने उत्पादों को बेचने की आवश्यकता होगी। वे इसे अपनी आज़ादी का उतार-चढ़ाव मानते थे, और आंदोलन की आरंभिक घटनाएं हुईं।

किसानों का विरोध सड़कों पर आने लगा, और उनके प्रमुख केंद्र दिल्ली के संगठित धरना स्थल पहुंचा। यहां पर वे सरकार के साथ वार्ता करने के लिए लंबे समय तक रुके। आंदोलन ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धरावाहिक धराए गए और कई मामलों में उनकी मांगों को समर्थित किया। यह आंदोलन किसानों की एकता और संघर्ष दृढ़ता का प्रतीक बन गया।

कृषि उत्पादन एवं खाद्य सुरक्षा

कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा दो महत्वपूर्ण अंग हैं जो एक-दूसरे से गहरा जुड़े हुए हैं। यहां कुछ मुख्य बिंदुओं को समझाया जा सकता है:
  1. कृषि उत्पादन: कृषि उत्पादन भारतीय अर्थव्यवस्था के एक मुख्य आधार है। यह देश की आजीविका का मुख्य स्रोत है और लगभग 58% भारतीय जनसंख्या को निर्धारित करता है। कृषि उत्पादन में सुधार के माध्यम से, उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ सकती है।
  2. खाद्य सुरक्षा: खाद्य सुरक्षा उस स्थिति को दर्शाती है जिसमें लोगों को स्वस्थ और पूरे संतुलित आहार की उपलब्धता होती है। यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि उत्पादन, पहुंच, और उपभोग।
कृषि उत्पादन में सुधार करके, उत्पादकता बढ़ाकर और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखकर, देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है और लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित रखा जा सकता है।

                                          औद्योगिक कृषि



औद्योगिक कृषि उन प्रक्रियाओं और तकनीकों का उपयोग करती है जो उच्च वृद्धि और मानकीकृत कृषि उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। इसमें मशीनों, तकनीकी उपकरणों, और केंद्रीकृत कृषि उत्पादन प्रक्रियाओं का उपयोग होता है जो खेती के विभिन्न पहलुओं में शामिल होते हैं, जैसे कि बीज, जल, और भूमि प्रबंधन, बीमा, और बाजार में पहुंच। औद्योगिक कृषि का उद्देश्य उत्पादनत्मकता और उत्पादकता में वृद्धि करना होता है, साथ ही खेती से जुड़े लाभकारी और सामाजिक आयामों को भी मजबूत बनाना होता है। इससे खेती क्षेत्र में नौकरियों का सृजन भी होता है, जो ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।

ऐतिहासिक विकास और भविष्य की संभावनाएँ

औद्योगिक कृषि ने कृषि सेक्टर में क्रांति लाई है, लेकिन इसके ऐतिहासिक विकास और भविष्य की संभावनाएँ किसी विशेष संदर्भ पर निर्भर करती हैं। इसमें तकनीकी उन्नति, सरकारी नीतियाँ, विज्ञान और अनुसंधान का योगदान, और बाजार की मांग जैसे कई कारक शामिल हैं।
  1. ऐतिहासिक विकास: औद्योगिक कृषि का ऐतिहासिक विकास कई दशकों तक वापस जाता है। पहली औद्योगिक कृषि की शुरुआत बड़े पैमाने पर विज्ञान और तकनीकी उन्नति के कारण हुई। उत्पादकता में वृद्धि, कृषि कार्यों की सुधार, और उत्पादों के नए रूपों की उत्पत्ति में यह महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  2. भविष्य की संभावनाएँ: औद्योगिक कृषि का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। तकनीकी उन्नति और डिजिटलीकरण के साथ-साथ उत्पादकता में वृद्धि, अधिक समय में उत्पादों की उत्पन्नता, बेहतर बाजार पहुंच, और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार उपलब्ध हो सकता है। इसके अलावा, यह कृषि सेक्टर को अधिक आकर्षक और लाभकारी बना सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक विकास होगा।
  3. चुनौतियाँ: हालांकि, कुछ चुनौतियाँ भी हैं जैसे कि संसाधनों की कमी, प्राकृतिक आपदाओं का सामना, और पर्यावरणीय प्रभाव। संसाधन संरक्षण, जल संचयन, और तकनीकी उन्नति के लिए नई सामर्थ्यों का अधिक विकास किया जाना आवश्यक होगा।
इस तरह से, औद्योगिक कृषि के भविष्य का प्रारंभिक अनुमान उत्तेजक है, लेकिन साथ हैं

चुनौतियाँ और मुद्दे

औद्योगिक कृषि के कुछ मुख्य चुनौतियाँ और मुद्दे निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. संसाधनों की संवेदनशीलता:औद्योगिक कृषि के लिए स्थाई संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे कि जल, मिट्टी, और ऊर्जा। संसाधनों की अनुपातित उपयोग से भविष्य में संकट उत्पन्न हो सकता है।
  2. पर्यावरणीय प्रभाव: औद्योगिक कृषि के लिए पर्यावरणीय प्रभाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जल प्रदूषण, भूमि की गर्मीकरण, और पेस्टिसाइड का उपयोग जैसे मुद्दे सामाजिक और पर्यावरणीय असामंजस्य का कारण बन सकते हैं।
  3. वित्तीय संगठन: औद्योगिक कृषि के लिए उचित वित्तीय संरचना की आवश्यकता है। किसानों को सामूहिक रूप से वित्त प्राप्त करने के लिए और उन्हें उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए समर्थ बाजार पहुंच की जरूरत होती है।
  4. तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता: औद्योगिक कृषि के लिए उपयुक्त तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता और तकनीकी क्षमता की आवश्यकता होती है। किसानों को नई तकनीकों का संबंधित प्रशिक्षण और सहायता प्राप्त करने के लिए अधिक संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
  5. सामाजिक परिवर्तन: औद्योगिक कृषि के साथ साथ विभिन्न सामाजिक परिवर्तन भी हो सकते हैं, जैसे कि रोजगार के पैटर्न में बदलाव, और गाँव के आर्थिक संरचना में परिवर्तन।
इन मुद्दों का सामना करने के लिए, विशेष रूप से सरकार, कृषि निगम, गैर सरकारी संगठन, और समुदायों के साथ सहयोग करना आवश्यक है।

जानवरों 

केंद्रित पशु आहार संचालन एक प्रकार की खेती प्रणाली है जिसमें पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाले आहार दिया जाता है ताकि उनकी प्रदर्शन श्रेणी और आरोग्य को बनाए रखा जा सके। इस प्रणाली में आहार की समग्र प्रबंधन की जाती है, जिसमें आहार की गुणवत्ता, प्रकार, और मात्रा को संज्ञान में लिया जाता है, साथ ही पशुओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।

केंद्रित पशु आहार संचालन के लाभ निम्नलिखित हो सकते हैं:
  1. उत्पादकता और गुणवत्ता की बढ़ोतरी: पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला आहार प्रदान किया जाता है, जो उनकी उत्पादकता और आरोग्य को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
  2. आर्थिक लाभ:  अधिक उत्पादकता और उत्पादों की बेहतर गुणवत्ता से आर्थिक लाभ होता है।
  3. पर्यावरण का संरक्षण:  अच्छी गुणवत्ता वाले आहार के प्रयोग से पशुओं का प्रदर्शन बेहतर होता है, जिससे व्यक्तिगत आहार की आवश्यकता कम होती है और पर्यावरण को कम बोझ पड़ता है।
  4. स्वास्थ्य का संरक्षण: समग्र प्रबंधन के माध्यम से पशुओं की अच्छी स्वास्थ्य और आरोग्य का ध्यान रखा जाता है, जिससे उनकी प्रदर्शन श्रेणी और उत्पादकता बढ़ती है।
केंद्रित पशु आहार संचालन के साथ, सम्मिलित प्रबंधन प्रक्रिया में उत्पादन की सभी पहलुओं का पूर्ण समर्थन किया जाता है, जिससे पशुपालकों को अधिक उत्पादकता, लाभ, और संबल बनाए रखने में मदद मिलती है।

फसलें 

फसलों का अच्छा प्रबंधन और उन्नत खेती तकनीकों का उपयोग करना किसानों को अधिक उत्पादक और स्थिर आय प्राप्त करने में मदद कर सकता है। कुछ अहम तकनीकों में समर्थ बीज, उर्वरकों और कीटनाशकों का सही प्रयोग, समय पर बुआई, पानी की व्यवस्था का अच्छा प्रबंधन, सही प्रकार की खाद, और विपरीत तापमान और पानी की आपूर्ति के लिए सही तकनीकों का उपयोग शामिल है। 

विशेष रूप से, बिजली या सोलर इरिगेशन, धान के खेतों में सिंचाई की सुविधा, स्वच्छ और उचित संचार, और उत्पादन और बाजार की जानकारी के लिए सही संदेश या एप्लिकेशन भी कृषि क्षेत्र में अच्छे प्रबंधन का हिस्सा हैं। 

अधिकतर संगठनों द्वारा आयोजित किए जा रहे ट्रेनिंग प्रोग्राम्स और किसानों के लिए सरकारी योजनाओं द्वारा उपलब्ध वित्तीय सहायता भी खेती के प्रबंधन को सुधारने में मदद कर सकती है।

स्थाई कृषि 

"स्थाई कृषि" का अर्थ है ऐसी कृषि प्रणाली जो संवेदनशीलता, सामर्थ्य, और समृद्धि के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना, जैविक विविधता को बढ़ावा देना, और आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारना है। 

स्थाई कृषि के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि जल संचयन, सिंचाई की प्रणालियों का उपयोग, सही खादों और उर्वरकों का उपयोग, जैविक खेती, और अन्य प्राकृतिक तकनीकों का उपयोग। 

स्थाई कृषि के लाभ शामिल हो सकते हैं:
  1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: स्थाई कृषि प्रणाली प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करती है, जैसे कि जल, जलवायु, और भूमि।
  2. ऊर्जा और उत्पादनता की संभावनाएं: सही तकनीकों का उपयोग करके, स्थाई कृषि प्रणाली ऊर्जा और उत्पादन की संभावनाओं को बढ़ावा देती है।
  3. समृद्धि के संरक्षण: स्थाई कृषि से, जल संसाधन, जैविक विविधता, और उत्पादकता का संरक्षण किया जा सकता है, जो समृद्धि की स्थिति को सुनिश्चित करता है।
  4. बेहतर आर्थिक स्थिति: स्थाई कृषि के लाभ स्थाई और सामर्थ्य वाले कृषकों को सुनिश्चित कर सकते हैं, जो उन्नत आर्थिक स्थिति के साथ जुड़ा होता है।
इस तरह से, स्थाई कृषि एक सुस्थ और दिग्दर्शी खेती प्रणाली है जो वर्तमान पीढ़ियों के आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ आने वाले पीढ़ियों के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण करती है।

                                  गहन फसल खेती

गहन फसल खेती में मुख्य रूप से अनाज फसलों की खेती को समाहित किया जाता है, जैसे कि गेहूं, चावल, जौ, मक्का, और चना। इन फसलों को उच्च मानकों और बाजार की मांग के अनुसार उत्पन्न किया जाता है।

गहन फसल खेती के लिए कुछ मुख्य तकनीकों और प्रणालियों में शामिल हो सकते हैं:

  1. बुआई: गहन फसलों की सही बुआई और समय पर बुआई करना महत्वपूर्ण है। उपयुक्त बुआई फसल की अच्छी उत्पादनता के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. उर्वरक और खाद: गहन फसलों के लिए सही मात्रा में उर्वरक और खाद का उपयोग करना आवश्यक है ताकि उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ सके।
  3. पानी प्रबंधन: सही सिंचाई प्रणालियों का उपयोग करना, जैसे कि ड्रिप इरिगेशन या स्प्रिंकलर सिस्टम, पानी की बचत के लिए महत्वपूर्ण है।
  4. रोग और कीट प्रबंधन: गहन फसलों को बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए उचित रोग और कीट प्रबंधन के उपायों का उपयोग करना आवश्यक है।
  5. उत्पादकता बढ़ावा: उत्तम तकनीकों का उपयोग करके गहन फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।
गहन फसल खेती के लिए उपयुक्त तकनीकों का उपयोग करके, किसान अच्छी उत्पादकता और लाभ कमा सकते हैं, और खेती क्षेत्र में विकास कर सकते हैं।

विशेषताएं

गहन फसल खेती की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  1. उच्च उत्पादकता: गहन फसलें अपनी उच्च उत्पादकता के लिए प्रसिद्ध हैं, जो अधिक उत्पादन और आर्थिक लाभ के साथ-साथ बाजार में अच्छी मांग प्राप्त करती हैं।
  2. व्यापारिक महत्व: गहन फसलें अपने व्यापारिक महत्व के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिनमें चावल, गेहूं, और मक्का शामिल हो सकते हैं।
  3. आर्थिक लाभ: गहन फसलों के खेती करने से किसानों को अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त होता है, जो उनके आर्थिक संघर्षों को कम करने में मदद करता है।
  4. विभिन्न उपयोग: गहन फसलें विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त होती हैं, जैसे कि अनाज, अन्नप्रसाद, और अन्य खाद्य उत्पादों के रूप में।
  5. सीमित बिगड़ती भूमि:  गहन फसलें बारिशी और साइकिकल खेती के लिए अधिक संयोजनशील होती हैं, जिससे बिगड़ती भूमि को सीमित किया जा सकता है।
  6. भूमि की रोटेशन: गहन फसलों की खेती का उपयोग भूमि की उर्वराता और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए भी किया जा सकता है, क्योंकि इन्हें अन्य फसलों के साथ रोटेशन किया जा सकता है।
  7. संसाधन संरक्षण: गहन फसलों की खेती से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सकता है, क्योंकि इनमें कम पानी का उपयोग होता है और इन्हें सही समय पर सिंचाई की जाती है।
इन विशेषताओं के कारण, गहन फसलें कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और कृषकों को अच्छी आर्थिक और सामाजिक स्थिति प्राप्त करने में मदद करती हैं।

इतिहास 

गहन फसलों की खेती का इतिहास बहुत प्राचीन है और मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इतिहास के विभिन्न युगों में, गेहूं, चावल, जौ, मक्का, और अन्य अनाज फसलों की खेती मानव जीवन के लिए मुख्य भोजन स्रोत रही है।
  1. प्राचीन काल:  गेहूं, चावल, और जौ की खेती प्राचीन समय से ही की जाती रही है। विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं जैसे कि सुमेरियन, मिस्री, इंडस सभ्यता आदि में इन फसलों की खेती का सबूत पाया गया है।
  2. मध्यकालीन काल:  मध्यकालीन युग में, गेहूं, चावल, जौ, और अन्य अनाज फसलों की खेती यूरोप और अन्य स्थानों में व्यापक रूप से विकसित हुई। खासकर, चावल और गेहूं के उत्पादन ने भूमिगत राज्यों की विकास और स्थायित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  3. आधुनिक काल:  औद्योगिक क्रांति के बाद, गहन फसलों की खेती में क्रांति आई। नई तकनीकों और जेनेटिक इंजीनियरिंग के उपयोग से, फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।
  4. आज का काल: आज, गहन फसलों की खेती एक व्यापक और तकनीकी उन्नति में है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन, जल संकट, और जनसंख्या वृद्धि के चुनौतियों के साथ साथ, फसलों की सुरक्षा और सुधार के लिए नई तकनीकों की खोज की जा रही है।
गहन फसलों की खेती का इतिहास मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ बदलते समय के साथ भी बदला है, और आज के समय में वे भूमिगत आर्थिक संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं।

उदाहरण

गहन फसलों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
  1. गेहूं (Wheat):  गेहूं एक प्रमुख अनाज है जिसकी खेती दुनियाभर में की जाती है। यह उत्तरी अमरीका, यूरोप, एशिया, और ऑस्ट्रेलिया में व्यापक रूप से उत्पादित होता है। गेहूं को अन्नप्रसाद, रोटी, आदि के रूप में उपयोग किया जाता है।
  2. चावल (Rice): चावल भारत, चीन, जापान, और थाईलैंड जैसे देशों में प्रमुख भोजन स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है। यह भी विशाल रूप से खेती जाती है और अन्य अनाजों के साथ मिलाकर खाया जाता है।
  3. जौ (Barley):  जौ अक्सर पशुओं के चारा के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग ब्रयूअरी उत्पादों जैसे कि बीयर भी बनाने के लिए किया जाता है।
  4. मक्का (Corn/Maize):  मक्का या कॉर्न अमेरिका में प्रमुख रूप से उत्पादित होता है और अन्य अनाजों के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग अन्नप्रसाद, खाने का तेल, पशु चारा, और अन्य उत्पादों के रूप में किया जाता है।
  5. कई अन्य अनाज: इसके अलावा, गहन फसलों में धान, रागी, बाजरा, ओट्स, और सोयाबीन भी शामिल हैं, जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से उत्पादित होते हैं और भोजन के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि गहन फसलें विभिन्न भोजन और उपयोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं और विश्व भर में उत्पादित और उपयोग किए जाते हैं।

आलोचना

गहन फसलों की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि विषय है जिस पर आलोचना आमतौर पर किसानों, विशेषज्ञों, सामाजिक वैज्ञानिकों, और नीति निर्माताओं द्वारा की जाती है। यह आलोचना कई मुख्य क्षेत्रों पर केंद्रित हो सकती है, जैसे कि:
  1. उत्पादकता: कृषि विशेषज्ञों और किसानों की आलोचना उत्पादकता के माध्यम से समृद्धि और उन्नति के लिए होती है। वे विभिन्न तकनीकों, बीज, खाद्य, और पानी प्रबंधन तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करके फसलों की बेहतर उत्पादकता के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं।
  2. प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन:  गहन फसलों की खेती के आलोचनात्मक पहलु में, प्राकृतिक संसाधनों के सही प्रबंधन की बात की जाती है। यह प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षा, जैव विविधता का समर्थन, और पर्यावरणीय प्रभाव की आलोचना करता है।
  3. आर्थिक और सामाजिक पहलु: गहन फसलों की खेती के आलोचनात्मक पहलु में, उनके आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह किसानों की आर्थिक स्थिति, उनकी सामाजिक सुरक्षा, और खाद्य सुरक्षा के मामलों पर बात करता है।
  4. सामर्थ्य और समर्थन: गहन फसलों की खेती के आलोचनात्मक पहलु में, विभिन्न सामर्थ्य और समर्थन कार्यक्रमों की चर्चा की जाती है जो किसानों को तकनीकी सहायता, वित्तीय सहायता, और बाजार एकीकरण की प्रदान करते हैं।
इन सभी क्षेत्रों में, गहन फसलों की खेती के लिए आलोचना केंद्रित है ताकि समृद्धि, सुरक्षा, और विकास के संबंध में नीतियों और उपायों को समझा जा सके।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

What is Artificial Intelligence?(आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है?)

History of uttrakhand (उत्तराखंड का इतिहास पौराणिक काल जितना पुराना है

How many rights are there in total?(कुल कितने अधिकार हैं?)