भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक सुधार के लिए संघर्ष किया। इसमें अनेक आंदोलन जैसे कि स्वदेशी आंदोलन, असहिष्णुता आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, खिलाफत आंदोलन आदि शामिल हैं।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण आंदोलन
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को मुंबई (तब मुंबई कहलाता था) में आयोजित एक सम्मेलन में हुई थी। इस सम्मेलन में आधिकारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया गया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकीकृत विरोध को आधार बनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता की राजनीतिक एकता को मजबूत करना और उनकी मांगों को सुनिश्चित करना था। आलोचना और अभियोग के बावजूद, यह एक प्रमुख राष्ट्रीय आंदोलन का आधार बन गया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बंग-भंग आंदोलन (स्वदेशी आंदोलन) : बंग-भंग आंदोलन, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है, 1905 में आरंभ हुआ था। यह आंदोलन भारत में ब्रिटिश सरकार के विभाजन के खिलाफ हुआ था, जिसमें बंगाल को पूरे प्रांतों में दो भागों में विभाजित किया गया था। इस आंदोलन के दौरान, लोगों ने बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में विभाजन के खिलाफ प्रदर्शन किया और स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया संवेग और दिशा दी।
- मुस्लिम लीग की स्थापना: अल्लामा इकबाल और मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में, मुस्लिम लीग का गठन 30 दिसंबर 1906 को ढाका (अब बांग्लादेश का हिस्सा) में हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के हित में राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करना और उनकी मांगों को समर्थन देना था। मुस्लिम लीग की स्थापना ने भारतीय राजनीति में मुस्लिम समुदाय का आधिकारिक प्रतिनिधित्व स्थापित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मुस्लिम समुदाय के पक्ष से भी समर्थन देने में मदद की।
- कांग्रेस का विभाजन: सूरत में हुए नरम दल और गरम दल का विभाजन 1907 में हुआ था, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंतरिक विवाद का प्रमुख कारण था। गरम दल ने स्वतंत्रता संग्राम को अधिक प्रगतिशील रुप में आगे बढ़ाने की मांग की, जबकि नरम दल ने अधिक प्रगतिशील और धीरे धीरे प्राप्त करने की स्थिति को प्राथमिकता दी। यह विभाजन गांधीजी की अध्यक्षता में संगठित हुआ था, जिन्होंने नरम दल की बाधा को हल करने के लिए कई प्रयास किए, परंतु अंततः 1908 में नर्म दल और गरम दल के बीच विभाजन हो गया।
- होमरूल आंदोलन : होमरूल आंदोलन 1917 में महाराष्ट्र के विशेष भाग, यानी होमरूल, में आयोजित किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था किसानों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके भूमि-आधिकार की मांग करना। आंदोलन के नेताओं में बाबा साहेब आंबेडकर भी शामिल थे। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र सरकार ने किसानों के हकों को समझते हुए कुछ सुधार किए, जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुए।
- लखनऊ पैक्ट: लखनऊ पैक्ट भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 1916 में हुई थी। इस पैक्ट को लखनऊ कांफ्रेंस के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सम्मिलित होकर बनाया गया था। इसमें दोनों पक्षों ने साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता के लिए मिलनसारी की थी और मुस्लिमों को उनके अधिकारों की सुरक्षा भी दी गई। इस पैक्ट के माध्यम से विभाजित हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच एक अहम समझौता हुआ था, जो स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण साझेदारी का प्रमुख उदाहरण बन गया। यह पैक्ट भारतीय राजनीति में हिंदू-मुस्लिम एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- मांटेग्यू घोषणा :मांटेग्यू घोषणा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 1917 में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी। इस घोषणा में, ब्रिटिश राज के सचिव लॉर्ड मांटेग्यू ने भारतीय राज्यों को स्वतंत्रता की संभावना दी थी, यदि वे पहले से संघर्षित क्षेत्रों में समर्थक सहयोग देते। इसके साथ ही, उन्होंने भारतीयों को सरकारी सेवाओं में अधिक सामेल होने का भी आश्वासन दिया। यह घोषणा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण एक मोड़ को प्रतिष्ठित करती है, जिसने स्वतंत्रता की दिशा में नई संभावनाओं को उत्पन्न किया। इसके पश्चात्, गांधीजी ने अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ और स्वतंत्रता की मांग को अपनाया।
- रॉलेट एक्ट: रॉलेट एक्ट भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई थी। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य था कि व्यक्तियों के स्वतंत्रता को कम किया जाए और सरकार को अधिक अधिकतम शक्ति दी जाए। इस एक्ट के तहत, ब्रिटिश सरकार को सामान्य स्थितियों में अपराधिकता के शंकु और अदालतों की अनिवार्य उपयोगकर्ता अवामी विधिक प्रणाली को लागू करने की अनुमति थी। यह एक्ट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आग को और भी भड़का दिया और जनसंघर्ष को बढ़ा दिया। इसका परिणाम था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक सामान्य अधिवेशन आयोजित किया, जिसमें नोटों वाली विरोधी धारा की मांग किया गया, और इसके बाद आम सत्याग्रह का आयोजन किया गया।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड: जलियांवाला बाग हत्या कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अत्यंत दुखद और अशोभनीय घटना थी, जो 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर, पंजाब में हुई थी। इस कांड में ब्रिटिश सेना के एक सैनिक, जनरल डायर की नेतृत्व में, जलियांवाला बाग में एक अमनविरोधी समर्थकों के भीड़ के उपर गोलियाँ चलाई गईं, जिससे बहुत से नागरिकों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इस हिंसाक कार्रवाई ने देशभक्ति और राष्ट्रीय आत्मसमर्पण में बहुत बड़ी उत्तेजना और आक्रोश उत्पन्न किया। इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी अधिक जोर दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सख्त विरोध की दिशा में प्रेरित किया।
- खिलाफत आंदोलन: खिताफत आंदोलन, जिसे भारतीय इतिहास में "खिलाफत आंदोलन" के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जो 1920 से 1924 तक चला। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था कि खिलाफत (यानी खिलाफत की संरक्षा और उसके पास की जाने वाली प्रतिष्ठा की संरक्षा) की समर्थन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट किया जाए। इस आंदोलन के मुख्य नेता मोहम्मद अली जौहर और मोहम्मद अली जिन्ना थे। खिताफत आंदोलन का मुख्य प्रेरणा स्रोत था मुस्लिम समुदाय के समूह के विरोध की, जो तुर्क साम्राज्य के अंत के बाद उबला। यह आंदोलन मुस्लिम समुदाय के साथ हिंदू समुदाय के बीच साझेदारी का भी माध्यम बना, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सामान्य आंदोलन में सहायक रहा।खिताफत आंदोलन का परिणामस्वरूप यह हुआ कि मुस्लिम समुदाय के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन के पीछे से हट गए और हिंदु-मुस्लिम साझेदारी में कमजोरी आई। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान की उत्तेजना की
- हांटर कमेटी की रिपोर्ट प्रकाशित:हांटर कमेटी की रिपोर्ट 1920 में प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट का पूरा नाम " हांटर आयोग की रिपोर्ट: पंजाब में हुए दरिंदगी की जाँच" था। यह आयोग ब्रिटिश सरकार द्वारा पंजाब में जलियांवाला बाग में हुई दरिंदगी की घटना की जांच के लिए गठित किया गया था। इस रिपोर्ट में आयोग ने उस घटना की जाँच की, जिसमें ।ब्रिटिश सेना ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक संदिग्ध रूप से असंतुष्ट समूह के ऊपर गोलियाँ चलाई थीं। इस रिपोर्ट में आयोग ने ब्रिटिश सरकार के कई कदमों की निंदा की, लेकिन उसके आधार पर कोई सजा नहीं दी गई। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बढ़ती आक्रोश और नाराजगी को प्रकट करती हैं!
- कांग्रेस का नागपुर का अधिवेशन: कांग्रेस का नागपुर का अधिवेशन 1920 में हुआ था। यह अधिवेशन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 35वां सत्र था और नागपुर, महाराष्ट्र में आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने स्वराज के लिए नई राजनीतिक रणनीतियों की घोषणा की और महात्मा गांधी को अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने अहिंसा, सत्याग्रह, और स्वराज की मांग को अपनाया। इसके बाद ही, गांधीजी ने अहिंसा का सिद्धांत और सत्याग्रह के माध्यम के रूप में अधिक प्रसिद्ध किया। नागपुर का अधिवेशन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना।
- असहयोग आन्दोलन का आरंभ : असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जो 1920 से 1942 तक चला। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था कि भारतीय लोग ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ असहयोग का प्रदर्शन करें और उन्हें स्वतंत्रता के लिए अभियान में जुटाएं। इस आंदोलन के माध्यम से महात्मा गांधी ने असहयोग का सिद्धांत प्रचारित किया और लोगों को शांतिपूर्ण प्रतिरोध की महत्वता समझाई। इस आंदोलन के दौरान लोग विद्यालयों, कानूनी अदालतों, और ब्रिटिश सरकारी दफ्तरों के खिलाफ असहयोग का प्रदर्शन करते थे।असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया और लोगों को स्वतंत्रता के लिए समर्थन में जुटाया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को सामाजिक और आर्थिक रूप से भारतीय जनता के प्रति संवेदनशीलता को महसूस करने पर मजबूर किया और उसे स्वतंत्रता के लिए अधिक प्रेरित किया।
- चौरी चौरा कांड: चौरी चौरा कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक दुःखद घटना था, जो 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा नामक स्थान पर हुई। इस घटना में एक गुप्ता विचारधारा के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अवामी अंधाधुंध हिंसा के चलते एक रेलवे स्टेशन को अग्निहोत्र में रख दिया। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस कर्मचारियों के साथ लोहे की लाठियों के बीच झड़प हो गई, जिसमें कई पुलिस अधिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हो गई।इस हिंसात्मक घटना के परिणामस्वरूप महात्मा गांधी ने आपने नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन को तत्काल बंद कर दिया, क्योंकि उन्हें यह घटना असहिष्णुता और असमर्थता का प्रमाण मानी गई। इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नए मोड़ पर ले गई और स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह और अहिंसा के महत्व को और अधिक प्रमुखता दी।
- स्वराज पार्टी की स्थापना: स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को हुई थी। यह पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतर्गत गठित की गई थी और उसका मुख्य उद्देश्य था कि वह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई में सामना करे। स्वराज पार्टी के स्थापकों में चित्रण्डन स्वामी, मोहनलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, विठलभाई पटेल, मोतीलाल नेहरू, मधुसूदन डास, एच. स. लाल, जयकार्ताराम, एस. सुब्रामणियम और आनंद चार्य शामिल थे। इस पार्टी का गठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि इससे स्वतंत्रता संग्राम को एक और अधिक व्यापक और समर्थन प्राप्त करने वाला संगठन मिला।
- हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन:हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (Hindustan Republican Association) एक भारतीय स्वतंत्रता संगठन था, जिसका गठन अभियान में भाग लेने वाले युवा नेताओं द्वारा 1924 में किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई में संघर्ष करना।हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के संस्थापकों में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल, और आशफाकुल्लाह शेरवानी जैसे प्रमुख नेताओं ने भाग लिया। इस संगठन का पहला कार्यक्रम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विरोध के लिए अभियान था।हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों ने कई गुप्त शक्तियों को लक्ष्य बनाया, जिसका परिणामस्वरूप 1925 में दिल्ली में डाक बँक के लूट की घटना हुई, जिसमें राजगुरु को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्टिक रिपब्लिकन एसोसिएशन बदल दिया गया।
- साइमन कमीशन की नियुक्ति: साइमन कमीशन एक ब्रिटिश सरकारी आयोग था जो 1919 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज के नेतृत्व में गठित किया गया था। इसका पूरा नाम "भारतीय नियमक संस्थान की समीक्षा कमीशन" था। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय राज्यों की संरचना, प्रशासन और नीतियों की पुनरावलोकन करना, संघ और प्रांतों के बीच शक्ति बांटने की व्यवस्था को समीक्षा करना, और भारतीय राष्ट्रपति के अधिकारों की निर्देशिका का पुनरावलोकन करना था।कमीशन के नेतृत्व में लॉर्ड साइमन, एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और सांसद, थे। हालांकि, भारतीय लोगों ने कमीशन में किसी भी प्रतिनिधि का अनुपातीकरण को ठुला दिया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे भारतीय हितों की पूरी तरह से सुनवाई नहीं होगी। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की और कमीशन की रिपोर्ट को अमान्य घोषित किया। यह आंदोलन बाद में नॉन कॉपरेशन मूवमेंट के रूप में विकसित हुआ।
- साइमन कमीशन का भारत आगमन: साइमन कमीशन का भारत में आगमन 1928 में हुआ था। यह कमीशन भारत आए और भारतीय राज्यों की संरचना, प्रशासन, और नीतियों का पुनरावलोकन करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित किया गया था। इसके सदस्य ब्रिटिश संसद के सदस्यों ने थे। इसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय समुदायों की आवाज सुनना और उनकी निर्ममता को सुनिश्चित करना। साइमन कमीशन के रिपोर्ट के प्रस्तावों का प्रमुख विरोध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने किया, क्योंकि उन्हें यह लगा कि रिपोर्ट में भारतीय स्वतंत्रता की मांगों को पूरा नहीं किया गया था। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण कदम था।
- नेहरू रिपोर्ट : अगर आप "नेहरू रिपोर्ट" के रूप में "नेहरू अध्यक्ष" का जिक्र कर रहे हैं, तो नेहरू रिपोर्ट का उल्लेख आप लगभग 1928 के दौरान किया जा रहा है। इस रिपोर्ट का अध्यक्ष थे पंडित मोतीलाल नेहरू। इस रिपोर्ट के प्रस्तावों का मुख्य उद्देश्य था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आगामी नीतियों को सार्वजनिक करना और ब्रिटिश सरकार से संबंधित मुद्दों पर स्पष्टता लाना। नेहरू रिपोर्ट का प्रमुख उद्देश्य था स्वराज्य के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करना। इस रिपोर्ट का प्रस्ताव नवंबर 1928 में बांबू संग्राम में अधिवेशन के दौरान पारित किया गया था।
- बारदौली सत्याग्रह: बारदौली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना था, जो 1921 में मध्य प्रदेश के चंद्रपुर जिले में हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था किसानों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाना और उनकी मुख्य मांगें शामिल थीं: भूमि का उत्तरदायित्व, किसानों के कर्ज की माफी, और अन्य किसानों की बेहतरी के लिए कानूनी सुधार।इस सत्याग्रह के दौरान, किसानों ने नाज़दीकी कृषि भूमि में अधिग्रहण, खेतों की बाढ़ और खेती की व्यवस्था में परिवर्तन के लिए मांगें उठाई। इस सत्याग्रह का प्रमुख नेता थे बाबा रामचंद्र, जिन्होंने आध्यात्मिक और नैतिक अदालत की स्थापना की थी, जिसे "नाया उपजाउ" कहा गया था।बारदौली सत्याग्रह की सफलता ने आंदोलन के नेतृत्व में लोकप्रियता बढ़ाई और किसानों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस आंदोलन ने किसानों के अधिकारों को लेकर सार्वजनिक ध्यान को आकर्षित किया और उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित किया।
- कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन :कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन, 1939 में हुआ था। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने अपनी स्वराज की मांग को "पूर्ण स्वराज" के रूप में स्पष्ट कर दिया था। इस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और सभी संगठन के प्रतिनिधियों ने एक साथ यह निर्णय किया कि वे अब "पूर्ण स्वराज" की मांग को स्वीकार करेंगे। इस अधिवेशन में प्रमुख निर्णय था "पूर्ण स्वराज" की मांग को अपनाना, जो अब कांग्रेस की प्राथमिकता बन गई। इसके अलावा, लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने अपनी फ्लैग के रूप में वंदे मातरम को अपनाया।
- नमक आंदोलन: नमक आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना था, जो 1930 में हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नमक के विधान का विरोध करना। इस आंदोलन का मुख्य नेता थे महात्मा गांधी, जिन्होंने डांडी मार्च के माध्यम से नमक तैयार करने और बेचने का अधिकार ब्रिटिश सरकार के विधानों के खिलाफ दिखाया। महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने साथियों के साथ मुंबई के तट पर करीब 240 मील (390 किलोमीटर) लंबे डांडी मार्च का आयोजन किया। 6 अप्रैल 1930 को, महात्मा गांधी ने डांडी में समुद्र किनारे पर पहुंचकर नमक तैयार किया, जिससे उन्होंने ब्रिटिश कानून को उलटा दिखाया और अपना विरोध प्रकट किया। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया और जनसमर्थन को एकत्रित किया।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन: सविनय अवज्ञा आंदोलन, जिसे अंग्रेजी में "Civil Disobedience Movement" कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गांधीजी की सविनय अवज्ञा या "अधीनता" के सिद्धांत का प्रयोग करना। सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ 1930 में हुआ था, जब महात्मा गांधी ने नमक के विरोध में डांडी मार्च की शुरुआत की। इस आंदोलन के दौरान, लोग विभिन्न अंग्रेजी सरकारी कानूनों का अवहेलना किया और बिना अनुमति के नमक बनाने और बेचने का कार्य किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया और अंततः ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विजय प्राप्त की।
- गांधी इरविन समझोता:गांधी इरविन समझौता, जो 5 मार्च 1931 को हुआ था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। इस समझौते के माध्यम से महात्मा गांधी और ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड ईरविन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए एक समझौता किया। इस समझौते के तहत, गांधीजी ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष को समाप्त करने और ब्रिटिश सरकार को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधित्व में दिल्ली में व्यावसायिक और राजनीतिक समीक्षा करने का आश्वासन दिया। इस समझौते के प्रमुख अंशों में यह था कि:
1. विदेशी उत्पादों का अधिग्रहण समाप्त किया जाएगा।
2. ब्रिटिश सरकार अगले समूह के सदस्यों के रूप में महात्मा गांधी के प्रतिनिधित्व में भारतीयों को शामिल करेगी।
3. राजकीय कैदियों को छोड़ा जाएगा।
4. ब्रिटिश सरकार भारत में स्वराज्य की निर्माण की प्रक्रिया के लिए कमीशन का गठन करेगी।
यह समझौता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसके बाद भी कई समस्याओं और विवादों का सामना किया गया
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसने देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया। यह आंदोलन विभिन्न कारणों और संदर्भों में हुआ, जैसे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक। यहां कुछ मुख्य घटनाओं का संक्षिप्त इतिहास है:
- सिपाही विद्रोह (1857): भारतीय इतिहास का पहला राष्ट्रीय आंदोलन, जिसे "सिपाही विद्रोह" या "1857 की क्रांति" कहा जाता है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई थी।
- असहयोग आंदोलन (1920-1922): महात्मा गांधी ने यह आंदोलन आरंभ किया जिसमें भारतीय जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग का नारा दिया।
- नमक का सत्याग्रह (1930): महात्मा गांधी ने नमक के विरोध में डांडी मार्च का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने नमक बनाने और बेचने का अधिकार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ दावा किया।
- कांग्रेस की लाहौर अधिवेशन (1929): इस अधिवेशन में कांग्रेस ने "पूर्ण स्वराज" की मांग को स्वीकार किया और भारतीय स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया।
- विभाजन और स्वतंत्रता (1947): भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के बाद, देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण उत्तराधिकारी हो गया।
ये केवल कुछ मुख्य घटनाएं हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास का हिस्सा हैं। इस आंदोलन के द्वारा, भारतीय लोगों ने अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए समर्थन प्रदान किया और देश की स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया।
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