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विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों?

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विश्व पर्यावरण दिवस   विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हमें प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशीलता और उनके संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करने का समय है। इस दिवस को याद करते हुए, हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने और स्थायी समृद्धि के दिशानिर्देश निर्धारित करने का संकल्प लेना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस को हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण सम्मेलन में हुई थी, जिसमें पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक संविधान बनाया गया था। इतिहास पर्यावरण दिवस का इतिहास 1972 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण और विकास समिति (UNEP) द्वारा स्थापित किया गया था। यह दिन प्रत्येक वर्ष 5 जून को मनाया जाता है और पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्णता को जागरूक करने के लिए विश्वभर में उत्साह से मनाया जाता है। यह दिन पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने, कार्यों को संबोधित करने और जागरूकता बढ़ाने का एक अच्छा मौका प्रदान करता है। आयोजन पर्यावरण दिवस के आयोजन में विभिन्न संगठन, सरकारी विभाग और समुदायों द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें प्रद...

बुद्ध पूर्णिमा क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?

बौद्ध पूर्णिमा 


बुद्ध पूर्णिमा हिंदू, जैन, और बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो बुद्ध के जन्म, प्रारंभिक बोध, और महापरिनिर्वाण की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग मंदिरों में जाकर पूजा और ध्यान करते हैं, साथ ही दान-धर्म का महत्व भी माना जाता है

परिचय

बुद्ध पूर्णिमा हिंदू, जैन, और बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान बुद्ध के जन्म, बोध, और महापरिनिर्वाण की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग मंदिरों में जाकर पूजा, ध्यान, और सम्मेलन करते हैं, और दान-धर्म का महत्व भी मानते हैं। यह त्योहार शांति, साधना, और सेवा की भावना को उत्पन्न करता है।

गृहत्याग 

बुद्ध गृहत्याग या "महाभिनिष्क्रमण" बुद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें सिद्धार्थ गौतम ने संसारिक जीवन को छोड़कर साधु बनने का निर्णय लिया। उन्होंने घर को छोड़कर आध्यात्मिक खोज की शुरुआत की, जिसने उन्हें बौद्धत्व के अनुसार ज्ञान और अनंत शांति की प्राप्ति कराई। इसका मान्यतार्थ यह है कि उन्होंने संसार में आने-जाने के चक्र को त्याग किया और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आत्मा के उद्धार का मार्ग चुना।

बौद्ध धर्म का इतिहास

बौद्ध धर्म का इतिहास व्यापक है और कई युगों तक फैला हुआ है। यह धर्म गौतम बुद्ध के शिक्षाओं पर आधारित है।
  1. बुद्ध का जीवन: बौद्ध धर्म का इतिहास उस समय से शुरू होता है जब गौतम बुद्ध, जिनका जन्म लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था, ने अपने जीवन को संसार की दुःखों के समाधान के लिए समर्पित किया। उन्होंने बोधिचित्त की प्राप्ति की और उनकी शिक्षाएं बौद्ध धर्म के मूल आधार बन गईं।
  2. बौद्ध धर्म की प्रसार प्रणाली:बुद्ध की मृत्यु के बाद, उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को फैलाने के लिए कई संघों की स्थापना की। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं त्रिपिटक (बौद्ध धर्म के मुख्य धार्मिक ग्रंथ) के निर्माता संघ, महासंघ, और तेजोविहार संघ।
  3. बौद्ध धर्म के प्रमुख धाराएँ: बौद्ध धर्म को भिन्न-भिन्न शैलियों और सम्प्रदायों में विभाजित किया गया, जैसे महायान, हीनयान, और वज्रायान।
  4. बौद्ध धर्म का विस्तार: बौद्ध धर्म ने अपने आरम्भिक दिनों से ही विश्व भर में प्रसार पाया। यहां तक कि बुद्ध के प्रमुख जीवन के देश भारत के बाहर भी बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ।
यह धर्म एक गहरी धार्मिक, दार्शनिक, और सामाजिक इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है और आज भी विश्व भर में उसके अनुयायी मिलते हैं।

बौद्ध धर्म का कालक्रम

बौद्ध धर्म का कालक्रम बहुत व्यापक है और यहां कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का संक्षिप्त अवलोकन है:
  1. 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व: बुद्ध का जन्म और बोध के बाद, उनके शिष्यों द्वारा उनकी शिक्षाओं का प्रचार प्रारंभ।
  2. 3वीं से 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व: हीनयान और महायान के विभाजन का आरंभ। महायान के सुधारक नागार्जुन और आश्वघोष के जीवन।
  3. 3वीं से 7वीं शताब्दी: बौद्ध धर्म के स्थापना के बाद, इसका प्रसार चीन, तिब्बत, जापान, और अन्य देशों में हुआ।
  4. 8वीं से 12वीं शताब्दी: वज्रायान के उदय और बौद्ध सिद्धांतों की विकास का काल।
  5. 13वीं से 19वीं शताब्दी: तिब्बती बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन और प्रचार।
  6. 19वीं शताब्दी के बाद: बौद्ध धर्म का अध्ययन और प्रचार विश्व भर में फैला और उसका मानवाधिकारों, शांति, और एकता के माध्यम से योगदान।
यह संक्षेप में बौद्ध धर्म का कालक्रम है, जो उसके इतिहासिक विकास का अवलोकन प्रदान करता है।

बौद्ध संस्कृति

बौद्ध संस्कृति विशाल, विविध, और उत्तेजक है। यह कई भागों में विभाजित है, जिनमें शिक्षा, कला, साहित्य, स्थापत्यकला, और दर्शन शामिल हैं।
  1. शिक्षा: बौद्ध संस्कृति में शिक्षा को महत्वपूर्ण माना जाता है। बौद्ध मठों और महाविहारों में शिक्षा के केंद्र स्थापित किए गए और बहुत से शिक्षाविद् इसे गहराई से अध्ययन किया।
  2. कला: बौद्ध संस्कृति में कला का महत्व बहुत उच्च है। यहां तक कि बुद्ध की मूर्तियों, पेंटिंग्स, और अद्भुत वास्तुकला का विकास हुआ।
  3. साहित्य: बौद्ध संस्कृति के अनुसार, कई महान कवियों, दार्शनिकों, और लेखकों ने उपनिषदों, शास्त्रों, और कई प्रकार की कथाओं को रचा।
  4. स्थापत्यकला: बौद्ध संस्कृति में स्थापत्यकला का विकास हुआ, जिसमें मंदिर, स्तूप, और विहारों का निर्माण शामिल है।
  5. दर्शन: बौद्ध धर्म में दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। महायान और हीनयान के विभिन्न शाखाओं में विभिन्न दर्शन और सिद्धांत हैं जो बौद्ध संस्कृति को विशेषता प्रदान करते हैं।
ये विभिन्न पहलुओं में बौद्ध संस्कृति की समृद्ध और उत्तेजक विविधता है।

बुनियादी मनोभाव

चार आर्य सत्य

चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांतों में से एक हैं। इन्हें गौतम बुद्ध ने उनकी प्रारंभिक ध्यान के अनुसार व्यक्त किया था। ये चार सत्य धुख, दुख का कारण, दुख का निवारण, और दुख के निवारण का मार्ग हैं। 
  1. धुख (Dukkha): यह सत्य दुख की मौजूदगी को स्वीकार करता है, जो जन्म, जरा, वृद्धि, रोग, मरण, और संयोग-वियोग के रूप में व्यक्त होता है।
  2. दुख का कारण (Samudaya): यह सत्य दुख का कारण संग (संग अर्थात् मोह) को बताता है, जो आसक्ति, अविद्या, और अविच्छेदनीय इच्छाओं में निहित है।
  3. दुख का निवारण (Nirodha):यह सत्य दुख का निवारण के उपाय को दर्शाता है, जो निर्दोषता, अपने आसक्तियों से मुक्ति, और निर्वाण की प्राप्ति में समाप्त होता है।
  4. दुख के निवारण का मार्ग (Magga): यह सत्य दुख के निवारण का मार्ग (आर्य अष्टांगिक मार्ग) का वर्णन करता है, जो शील, समाधि, प्रज्ञा, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक जीविका, सम्यक ध्यान, और सम्यक समाधि से युक्त है।
ये चार सत्य बुद्ध की महापरिनिर्वाण के पहले उन्होंने बोधिगया में उनके प्रतिष्ठानका के समय प्रतिपादित किए थे।

आर्य अष्टांग मार्ग

आर्य अष्टांगिक मार्ग (Noble Eightfold Path) बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है। यह आठ आधारशिल मार्ग है जो दुख के निवारण के लिए एक प्रामाणिक उपाय है। ये आठ आधारशिल मार्ग हैं:
  1. सम्मा दृष्टि (Right View): सत्य को समझना और दुख के कारणों को समझना।
  2. सम्मा संकल्प (Right Intention): दुख से मुक्ति के लिए सही इरादा और निर्देशन रखना।
  3. सम्मा वच्चा (Right Speech):सच्चा, अपवादरहित और सहज भाषा का उपयोग करना।
  4. सम्मा कर्मन्त (Right Action): धार्मिक और निष्कपट कार्य करना।
  5. सम्मा आजीविक (Right Livelihood): उपायुक्त और ईमानदारी से अपना आजीविका चुनना।
  6. सम्मा वायाम (Right Effort): अच्छे कार्यों की प्रेरणा और उत्साह के साथ बुराई का उन्मूलन करना।
  7. सम्मा समाधि (Right Mindfulness): विचार, भावना, और क्रियाओं में संवेदनशीलता और ध्यान रखना।
  8. सम्मा समाधि (Right Concentration): ध्यान के माध्यम से मन की एकाग्रता और संयम प्राप्त करना।
ये आठ मार्ग बौद्ध धर्म के अनुसार सच्ची धार्मिक जीवनशैली को प्रशस्त करते हैं और दुःख से मुक्ति के द्वार खोलते हैं।

निर्वाण त्रिरत्न पंचशील

निर्वाण (Nirvana) बौद्ध धर्म में उस अंतिम आदर्श को दर्शाता है जिसमें अटल शांति, आत्मसात्ता, और मुक्ति की प्राप्ति होती है। यह सत्य है जिसमें दुख का पूर्ण अबाधित निवारण होता है।

त्रिरत्न (Three Jewels) बौद्ध धर्म में उन तीन महत्वपूर्ण आदर्शों को दर्शाता है जो बौद्ध धर्म का आधार होते हैं:
  1. बुद्ध (Buddha): गौतम बुद्ध, जो धर्म के सिद्धांतों के प्रकारक और प्रेरणास्रोत हैं।
  2. धर्म (Dharma):बुद्ध के शिक्षाओं और उनके आदर्शों का अध्ययन और पालन करने का मार्ग।
  3. संघ (Sangha):बौद्ध समुदाय या साधु-संघ, जिसमें धर्म के अनुयायी और शिष्य शामिल होते हैं।
पंचशील (Five Precepts) बौद्ध धर्म में पाँच महत्वपूर्ण आदर्श हैं जो एक शिष्य को अपने जीवन में अनुसरण करने का प्रेरणा देते हैं:
1. हिंसा से दूर रहना
2. चोरी न करना
3. अश्लीलता से दूर रहना
4. झूठ न बोलना
5. मद्यपान और अधर्मिक औषधियों का सेवन न करना

ये आदर्श शिष्य को एक निरादार और धार्मिक जीवनशैली की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

अहम व्यक्ति 

गौतम बुद्ध बोधिसत्व

गौतम बुद्ध बोधिसत्व (Gautama Buddha Bodhisattva) का अर्थ होता है गौतम बुद्ध के रूप में उत्तरदाता। बोधिसत्व बौद्ध धर्म में वह व्यक्ति होता है जो संसार में सभी सत्ताओं को मुक्ति की दिशा में मार्गदर्शन करता है और उनकी शिक्षा को प्रदान करता है।

गौतम बुद्ध बोधिसत्व के रूप में बुद्ध की अनेक कथाएं हैं, जिसमें उन्होंने संसार के दुख से पीड़ित लोगों की सहायता करने के लिए अनेक जन्मों में उनके रूप में अवतरण किया है। गौतम बुद्ध का बोधिसत्व रूप उनकी निःस्वार्थ भावना, दया, करुणा, और महान उद्दीपना का प्रतिक है।

बोधिसत्व की एक अहम गुणवत्ता उनकी बड़ी भलाई के लिए सबका भला चाहना है, जिससे वे समस्त संवेदनशील जीवों के दुख को समाप्त कर सकें। गौतम बुद्ध के साथ-साथ अन्य बौद्ध धर्म के महापुरुषों के रूप में भी कई बोधिसत्वों का उल्लेख है, जो निःस्वार्थता और सेवा के परम आदर्श को प्रकट करते हैं।

क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म क्षेत्रानुसार विभाजित होता है और विभिन्न भागों में प्रचारित और अभ्युदाय किया जाता है। यहां कुछ प्रमुख क्षेत्रों के बारे में बताया जा रहा है:
  1. भारतीय उपमहाद्वीप: भारतीय उपमहाद्वीप बौद्ध धर्म के उत्तरी केंद्र है, जहां बौद्ध धर्म की मूल स्थापना हुई थी। सार्वजनिक उत्सव, ध्यानासन, और बौद्ध धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थल इस क्षेत्र में हैं।
  2. एशियाई देश: अन्य एशियाई देशों में भी बौद्ध धर्म की प्रासारिक वृद्धि देखी जा रही है। यहां चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल, और भूटान शामिल हैं।
  3. पश्चिमी दुनिया: बौद्ध धर्म का प्रचार पश्चिमी दुनिया में भी हो रहा है, खासकर यूरोप और अमेरिका में। यहां बौद्ध धर्म के अध्ययन केंद्र और समुदाय हैं जो बौद्ध सिद्धांतों की शिक्षा और ध्यान का प्रचार करते हैं।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, बौद्ध धर्म कई अन्य क्षेत्रों में भी प्रासारित है और अपनी अनूठी परंपरा और प्रचार पद्धतियों के माध्यम से विविधता का सामंजस्य बनाए रखता है।

दक्षिण पूर्वी बुद्ध धर्म

दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म अधिकतर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में प्राचीन और समकालीन रूप से प्रचारित है। इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के कई महत्वपूर्ण केंद्र और समुदाय हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखते हैं।
  1. थेरवाद बौद्ध धर्म (Theravada Buddhism): यह बौद्ध धर्म का सबसे पुराना और लोकप्रिय रूप है, और इसका प्रमुख केंद्र श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, बर्मा (म्यांमार), लाओस, और वियतनाम में है।
  2. महायान बौद्ध धर्म (Mahayana Buddhism):यह बौद्ध धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमें चीन, जापान, कोरिया, नेपाल, भूटान, और तिब्बत शामिल हैं। महायान बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  3. वाज्रायान बौद्ध धर्म (Vajrayana Buddhism): इस शाखा का प्रमुख केंद्र तिब्बत में है, लेकिन यह शैली नेपाल, भूटान, और भारत के हिमालयी क्षेत्रों में भी प्रचलित है। वाज्रायान में तांत्रिक साधनाएं, मन्त्र, और ध्यान का अध्ययन किया जाता है।
ये विभिन्न बौद्ध शाखाएं और उनके सिद्धांतों में विभिन्नता होती है, लेकिन वे सभी बौद्ध धर्म की मूल शिक्षाओं को मानते हैं।

चीनी बौद्ध धर्म 

चीनी बौद्ध धर्म, जिसे महायान बौद्ध धर्म के अंतर्गत भी जाना जाता है, चीन के अंदर बौद्ध धर्म के विभिन्न स्कूलों और धाराओं को समाहित करता है। चीनी बौद्ध धर्म ने बौद्ध धर्म की विविधता को विकसित किया है और उसमें अपने विशेष धाराओं को शामिल किया है।

चीन में बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण केंद्रों में से कुछ निम्नलिखित हैं:
  1. शाओलिन मंदिर: यह चीन में स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर है, जो विशेषतः कुंग फू शाओलिन के साथ जुड़ा है। यहां ध्यान, योग, और बौद्ध धर्म की अनुष्ठानिक प्रक्रियाएं संचालित की जाती हैं।
  2. पुतो गाओ सी: यह चीनी बौद्ध धर्म का एक और प्रमुख केंद्र है, जो ध्यान और धर्म के शिक्षाओं के लिए प्रसिद्ध है।
  3. छोगायां मंदिर: यह चीनी महायान बौद्ध मंदिर यिचांग प्रांत में स्थित है। यहां भगवान बुद्ध की मूर्ति के रूप में अनुस्मारक विराजमान है।
चीनी बौद्ध धर्म में भिन्न धाराएं और स्कूल हैं, जो अपने आचरणों, धार्मिक अद्यात्म, और सिद्धांतों में अलग होते हैं, लेकिन वे सभी धर्म के मूल उद्देश्य की ओर दृष्टि रखते हैं - दुःख से मुक्ति।

तिब्बती बौद्ध धर्म 

तिब्बती बौद्ध धर्म, जिसे वाज्रायान बौद्ध धर्म के रूप में भी जाना जाता है, तिब्बत के साथ-साथ भारत, नेपाल, भूटान, और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में प्राचीन काल से प्रचलित है। यह बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है और तिब्बती सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

तिब्बती बौद्ध धर्म की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  1. लामा और तुलकु: तिब्बती बौद्ध धर्म में गुरु शिष्य परंपरा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहां लामा (गुरु) और तुलकु (शिष्य) का संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है और शिष्य को गुरु की शिक्षा का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. मंदिर और गोम्पा:  तिब्बती बौद्ध धर्म में मंदिर (च्यांग) और गोम्पा (विहार) का महत्व होता है। ये स्थान ध्यान, पूजा, और धार्मिक अभ्यास के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।
  3. मणि प्रयोग, प्रार्थना चक्र और मंत्र: तिब्बती बौद्ध धर्म में मणि प्रयोग, प्रार्थना चक्र, और मंत्रों का विशेष महत्व है। ये साधनाओं के रूप में उपयोग किए जाते हैं जो शिष्य को ध्यान और धार्मिक अभ्यास में सहायक होते हैं।
  4. तांत्रिक साधनाएं: तिब्बती बौद्ध धर्म में तांत्रिक साधनाएं (वाज्रायान) का विशेष महत्व है। इन साधनाओं का उद्देश्य शिष्य को उच्चतम चेतना और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।
तिब्बती बौद्ध धर्म एक अत्यंत गहरी और प्रभावशाली धार्मिक परंपरा है, जिसमें ध्यान, धार्मिक अभ्यास, और शिक्षा का विशेष महत्व है।

पश्चिमी बौद्ध धर्म

 

पश्चिमी बौद्ध धर्म, या बौद्ध धर्म का पश्चिमीकरण, पश्चिमी दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार और अध्ययन को संदर्भित करता है। यहां प्रमुखतः महायान बौद्ध धर्म के प्रचार और अध्ययन को समेटा जाता है, जो पश्चिमी देशों में प्रमुख हैं।

पश्चिमी बौद्ध धर्म के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  1. ध्यान और मनन: पश्चिमी बौद्ध धर्म में ध्यान और मनन का महत्वाकांक्षी अध्ययन होता है। यह धर्म में ध्यान और मनन के अभ्यास को महत्वपूर्ण रूप से लाया जाता है जो चित्त की शांति और उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है।
  2. शिक्षा और अध्ययन: पश्चिमी देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार और अध्ययन को प्रोत्साहित किया जाता है। यहां विभिन्न शिक्षा संस्थानों और ध्यान केंद्रों में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया जाता है और लोग उसकी शिक्षा को अध्ययन करते हैं।
  3. धर्मिक संगठन: पश्चिमी बौद्ध धर्म में धर्मिक संगठनों का विशेष महत्व है। ये संगठन ध्यान, पूजा, धार्मिक अध्ययन, और सेवा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
  4. शिक्षक और गुरु: पश्चिमी बौद्ध धर्म में गुरु शिष्य परंपरा का महत्व बड़ा है। गुरु शिष्य संबंध के माध्यम से शिक्षा और धार्मिक ज्ञान का पारंपरिक उत्तरदाता होते हैं।
पश्चिमी बौद्ध धर्म विविधता और शांति के माध्यम से मानवता को संचारित करने का उद्देश्य रखता है, और धर्मिक अभ्यासों के माध्यम से जीवन को संतुलित और सार्थक बनाने का प्रयास करता

थेरावाद  महायान

थेरवाद और महायान, दोनों ही महत्वपूर्ण बौद्ध धर्म की शाखाएं हैं, जो विभिन्न धार्मिक प्रतिष्ठानों में प्राचीन समय से प्रचलित हैं। ये दोनों ही शाखाएं बुद्ध के उपदेशों और धर्मिक सिद्धांतों को मानती हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और प्रयोग में अंतर होता है।
  1. थेरवाद: थेरवाद बौद्ध धर्म को प्राचीन बौद्ध संघ का प्रतिष्ठान माना जाता है, जो भारत के उत्तरी भाग से शुरू होकर दक्षिण-पूर्वी एशिया में फैल गया। थेरवाद का मुख्य केंद्र श्रीलंका, बर्मा, ताइलैंड, कम्बोडिया, और लाओस है। थेरवाद बौद्ध धर्म बुद्ध के मूल उपदेशों को प्रमुखतः मानता है।
  2. महायान: महायान बौद्ध धर्म का मुख्य केंद्र चीन, जापान, और कोरिया है। इसमें बोधिसत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो सभी संवेदनशील जीवों की मुक्ति के लिए सहायता करते हैं। महायान की प्रमुख शाखाओं में जैन, थेरवाद, और वाज्रायान शामिल हैं।
थेरवाद बौद्ध धर्म को बुद्ध के मूल उपदेशों का अध्ययन करने का प्राधान्य दिया जाता है, जबकि महायान बौद्ध धर्म में बोधिसत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और विशाल संतान में सभी सत्ताओं की मुक्ति का आदर्श लिया जाता है।

वज्रयान

वज्रयान, जिसे तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जो महायान बौद्ध धर्म के अंतर्गत आती है। यह बौद्ध धर्म का एक उप-शाखा है जो भारत, तिब्बत, नेपाल, और भूटान में प्रचलित है।

वज्रयान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  1. तांत्रिक साधना: वज्रयान में तांत्रिक साधना का महत्व होता है, जिसमें मंत्र, मंत्र-साधना, मंदल, मुद्रा, और मन्त्र-चिन्तन का उपयोग किया जाता है। इन तांत्रिक साधनाओं का उद्देश्य जीवन की उच्चतम उद्देश्यों की प्राप्ति है।
  2. बोधिसत्व और बुद्धत्व: वज्रयान में बोधिसत्व और बुद्धत्व का विशेष महत्व है। यहां बोधिसत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो सभी संवेदनशील जीवों की मुक्ति के लिए सहायता करते हैं।
  3. गुरु शिष्य परंपरा :वज्रयान में गुरु शिष्य परंपरा का महत्व है। गुरु के द्वारा शिष्य को धार्मिक ज्ञान और सिद्धि की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया जाता है।
  4. उपासना और पूजा: वज्रयान में उपासना और पूजा का विशेष महत्व होता है। ध्यान, पूजा, मंत्र जाप, और मुद्रा का प्रयोग उपासना के रूप में किया जाता है।
वज्रयान बौद्ध धर्म में तांत्रिक साधना का अध्ययन करने और प्रैक्टिस करने का महत्व होता है, जो शिष्य को ज्ञान और मुक्ति की प्राप्ति में सहायक होता हैं

बोधि वृक्ष 


बोधि वृक्ष, जिसे बोधगया वृक्ष भी कहा जाता है, एक प्रमुख प्राचीन पेड़ है जो बौद्ध धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस पेड़ का विशेष महत्व उस स्थान पर है जहां भगवान बुद्ध ने अपने बोध की प्राप्ति की थी।

बोधि वृक्ष बोधगया, भारत में स्थित है, जहां बुद्ध ने संसार के दुःख से मुक्ति की प्राप्ति के लिए तपस्या की थी। विश्व में बौद्धों के लिए बोधि वृक्ष धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन का महत्वपूर्ण स्थल है।

बोधि वृक्ष का वैशिष्ट्य उसकी ऊंचाई, व्यापकता, और प्राचीनता में है। इसे बौद्ध धर्म के महान ऐतिहासिक और आध्यात्मिक समारोहों का एक प्रतीक माना जाता है। बोधि वृक्ष के नीचे स्थित महाबोधि मंदिर, जहां बुद्ध की बोध की प्राप्ति की गई थी, भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।

पहली कोशिश

"बोधि वृक्ष" और "पहली कोशिश" दोनों ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों को दर्शाते हैं। "बोधि वृक्ष" बौद्ध धर्म का एक प्रमुख प्रतीक है, जबकि "पहली कोशिश" एक व्यक्ति या समूह की प्रथम प्रयास को संदर्भित करता है। 

"बोधि वृक्ष" भगवान बुद्ध के बोध की स्थली है, जहां उन्होंने सत्ता का अभिवादन किया था। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और बौद्धों के लिए आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

"पहली कोशिश" का उपयोग किसी के जीवन में कुछ नया करने के लिए किया जाता है, जो किसी भी प्रकार के काम की प्रारंभिक संचेष्टा को दर्शाता है। यह प्रेरणा और उत्साह को जताता है कि कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पहली कदम बड़ा महत्वपूर्ण होता है।

समारोह

"बोध दिवस" एक धार्मिक आयोजन हो सकता है जो बौद्ध धर्म के महान गुरु बुद्ध के बोध की प्राप्ति की जयंती को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो बौद्ध समुदाय के लोगों के बीच एकत्रित होने का अवसर प्रदान करता है।

बोध दिवस प्रतिवर्ष बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो चैत्र माह के पूर्णिमा तिथि को पड़ती है। यह दिन बुद्ध के बोध की प्राप्ति की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिसमें बौद्ध समुदाय के लोग उनके उपदेशों का अध्ययन करते हैं, पूजा और ध्यान करते हैं, और धार्मिक गाने गाते हैं।

इस दिन बौद्ध विश्वभर में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें बौद्ध मंदिरों की सजावट, प्रवचन, साधुओं और गुरुओं के उपदेश, सेवा कार्य, और धर्मिक साहित्य का पठन शामिल होता है। यह दिन समर्पित होता है बुद्ध के शिक्षाओं और उपदेशों के साथ अनुशासन और धार्मिक साधना को याद करने के लिए।

बौद्ध पूजा

बौद्ध पूजा, जिसे अन्य शब्दों में "धर्म पूजा" भी कहा जाता है, बौद्ध समुदाय के द्वारा धार्मिक उपासना का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह एक आध्यात्मिक अभिवृद्धि और धार्मिक सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

बौद्ध पूजा में कई विभिन्न तरीके से उपासना की जाती है, जो धार्मिक आदर्शों, परंपराओं और स्थलीय संस्कृति के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। कुछ प्रमुख पूजा प्रतियोगिताएँ और उपयोगिताएँ शामिल हो सकती हैं:
  1. ध्यान (भवना या ध्यान): यह मानसिक अभ्यास बौद्ध साधकों के लिए महत्वपूर्ण है, जो ध्यान और मनन के माध्यम से मन को शुद्ध और स्थिर करता है।
  2. पूजा (उपासना): बौद्ध पूजा में ध्यान, प्रार्थना, मंत्र-जाप, ध्यान, और धर्मिक उपासना की विभिन्न रूपों का उपयोग किया जाता है।
  3. धर्मचक्र प्रवर्तन:  यह बौद्ध उपासना का एक प्रमुख तिथि है, जिसमें धर्मचक्र का प्रवर्तन किया जाता है, जिसमें बुद्ध ने अपने पहले पंचवर्षीय संगत के साथ उपदेश दिया था।
  4. परित्राणा पूजा: इसमें बौद्ध देवी तारा की पूजा होती है, जो दुःखों की अवधारणा करती हैं और साधकों को संसारिक संघर्षों से मुक्ति प्रदान करती हैं।
इन सभी पूजा आयोजनों का उद्देश्य बौद्ध समुदाय के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा, साधना, और साध्य की दिशा में मार्गदर्शन करना है।

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